कम्प्यूटर एक ऐसा यंत्र है जिसकी तुलना मानवीय शरीर की रचना से होती है तथा यह कहना भी गलत न होगा कि इसका विकास मानव संसाधन के विकल्प के रूप में ही हुआ। इस अध्याय में कम्प्यूटर की परिभाषा, कम्प्यूटर का प्रारम्भिक स्वरूप एवं इसका इतिहास, इसकी विशेषताएँ एवं कमियाँ, कम्प्यूटर के विभिन्न प्रकार तथा पर्सनल कम्प्यूटर पर आधारित रचना प्रस्तुत है।

विषयसूची |
1. कम्प्यूटर क्या है? |
2. कम्प्यूटर की विशेषताएँ |
3. कम्प्यूटर की सीमाएँ |
4. कम्प्यूटर का विकास |
5. कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ |
6. कम्प्यूटर के प्रकार |
कम्प्यूटर क्या है? (What is Computer)
कम्प्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जो निर्देशों के समूह (प्रोग्राम) के नियन्त्रण में डेटा या तथ्य पर क्रिया (process) करके सूचना (information) उत्पन्न (generate) करता है। कम्प्यूटर में डाय (data) को स्वीकार (accept) करके प्रोग्राम को क्रियान्वित करने की क्षमता होती है। यह डेय पर गणितीय (mathematical) व तार्किक (logical) क्रियाओं को करने में सक्षम होता है। कम्प्यूटर में डेटा (data) स्वीकार करने के लिए निवेश यंत्र (input device) होती है। प्रोसेसिंग (Processing) का कार्य जिस डिवाइस में होता है, उसे केन्द्रीय संसाधन इकाई (central processing unit) कहते हैं।
दूसरे शब्दों में कम्प्यूटर एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक यंत्र (electronic device) है जिसमे निम्न गुड़ है
- मानव या प्रयोक्ता (user) द्वारा प्रदत्त (supplied) डाटा को स्वीकार (accept) करना ।
- स्वीकृत डाटा और निर्देशों को संगृहीत या स्टोर (store) करके निर्देशों (instruction) को कार्यान्वित करना।
- गणितीय क्रियाओं (mathematical operations) व तार्किक क्रियाओं (Logical Operations) को इलेक्ट्रॉनिक परिपथ में कार्यान्वित करना।
- प्रयोक्ता (user) को आवश्यकतानुसार परिणाम देना।
कम्प्यूटर की विशेषताएँ (Advantages of Computer)
आज के युग कम्प्यूटर का उपयोग हर क्षेत्र में किया जा रहा है, क्योकि ये मानव की तुलना में अधिक सरलता से कार्य कर सकता है. इसका कारण इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
गति (Speed) :- कम्प्यूटर किसी भी कार्य को बहुत तेजी से कर सकता है। कम्प्यूटर कुछ ही क्षण में गुणा/भाग या जोड़/घटाव की करोड़ों क्रियाएँ कर सकता है। यदि आपको 440 x 56 का गुणा करना हो तो इसमें लगभग 1 से लकर 2 मिनट तक का आपको समय लग सकता है। यही कार्य पॉकेट कैलकुलेटर से करें तो वह लगभग 5 सेकेंड में किया जा सकता है लेकिन एक आधुनिक कम्प्यूटर में यदि प्रोग्राम दिया गया हो तो ऐसी 30 लाख क्रियायें एक साथ कुछ सेकण्डों (Seconds) में सम्पन्न हो सकते हैं।
स्वचालन (Automation) :- कम्प्यूटर अपना कार्य प्रोग्राम (निर्देशों का एक समूह) के एक बार लोड हो जाने पर स्वतः करता रहता है। उदाहरणार्थ, किसी डेटा एन्ट्री प्रोग्राम पर कार्य कर रहे ऑपरेटर को स्वयं रिपोर्ट तैयार करने की आवश्यकता नहीं, अपितु कम्प्यूटर स्वयं प्रविष्ट डेटा के आधार पर रिपोर्ट जनित करता रहता है।
शुद्धता (Accuracy) :- कम्प्यूटर अपना कार्य बिना किसी गलती के करता है। कम्प्यूटर द्वारा गलती किये जाने के कई उदाहरण सामने आते हैं लेकिन इन सभी गलतियों में या तो गलती कम्प्यूटर में डेटा प्रविष्ट करते समय की गई होती है या प्रोग्राम के विकास के समय, कम्प्यूटर स्वयं कभी गलती नहीं करता है।
सार्वभौमिकता (Versatility) :- कम्प्यूटर अपनी सार्वभौमिकता के गुण के कारण बड़ी तेजी से सारी दुनिया में छाता जा रहा है। कम्प्यूटर गणितीय कार्यों को सम्पन्न करने के साथ-साथ व्यवसायिक कार्यों के लिए भी प्रयोग में लाया जाने लगा है। कम्प्यूटर में प्रिंटर संयोजित करके सभी प्रकार की सूचनायें कई रूपों में प्रस्तुत की जा सकती हैं। कम्प्यूटर को टेलीफोन या टेलीफोन लाइन से जोड़कर सारी दुनिया में सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है। कम्प्यूटर की सहायता से तरह-तरह के खेल खेले जा सकते हैं।
उच्च संग्रहण क्षमता (High Storage Capacity) :- एक कम्प्यूटर सिस्टम की डेटा संग्रहण क्षमता अत्यधिक होती है। कम्प्यूटर लाखों शब्दों को बहुत कम जगह में संगृहीत करके रख सकता है। यह सभी प्रकार के डेटा, चित्र, प्रोग्राम, क्रीडा तथा आवाज को कई वर्षों तक संगृहीत करके रख सकता है। हम कभी भी यह सूचना कुछ ही सेकेण्ड में प्राप्त कर सकते हैं तथा अपने उपयोग में ला सकते हैं।
कर्मठता (Diligence) :- मानव किसी कार्य को निरन्तर कुछ ही घण्टों तक करते हुए थक जाता है। इसके ठीक विपरीत, कम्प्यूटर किसी कार्य को निरन्तर कई घण्टों, दिनों तथा महीनों तक करने की क्षमता रखता है। इसके बावजूद उसके कार्य करने की क्षमता में न ही कोई कमी आती है और न ही कार्य के परिणाम की शुद्धता घटती है। कम्प्यूटर किसी भी दिये गये कार्य को बगैर किसी भेद-भाव के करता है चाहे कार्य रुचिकर हो या उबाऊ।
कम्प्यूटर की सीमाएँ (Computer Limitations)
कम्प्यूटर ने निस्संदेह मानव जीवन को सहज बनाने में अभूतपूर्व योगदान दिया है। आज तक के सभी अविष्कारों पर कम्प्यूटर के अविष्कार ने एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ी है। पिछले खण्ड में आपने कम्प्यूटर की विशेषताओं का अध्ययन किया। कम्प्यूटर की विशेषताएँ ही मूलतः आज इसके लोकप्रियता का कारण है किन्तु किसी भी मानव निर्मित प्रणाली की सीमाएँ या कमियाँ हो सकती है। इसके बगैर किसी प्रणाली की कल्पना शायद नहीं की जा सकती है। अत: कम्प्यूटर की कमियों का भी जानना आवश्यक है।
इसकी कमियाँ इस प्रकार हैं
बुद्धिमता की कमी (Lack of Intelligence) :- कम्प्यूटर मशीन है। इसका कार्य प्रयोक्ता के निर्देशों को कार्यान्वित करना है। कम्प्यूटर किसी भी स्थिति में न ही निर्देश से अधिक और न ही इससे कम का क्रियान्वयन करता है। यद्यपि कम्प्यूटर वैज्ञानिक आज के कम्प्यूटर में कृत्रिम बुद्धिमता के बारे में शोध कर रहे हैं, इसमें सफलता मिलने पर कम्प्यूटर के अंदर बुद्धिमता की कमी तो कुछ हद तक दूर हो सकेगी परन्तु मानवीय बुद्धिमता की तुलना कभी भी एक मशीनी बुद्धिमता के साथ नहीं हो पाएगी।
आत्मरक्षा करने में अक्षम (Unable In Self Protecting) :- कम्प्यूटर चाहे जितना भी शक्तिशाली क्यों न हो परन्तु उसका नियंत्रण मानव के पास ही होता है तथा वह जिस प्रकार उसे नियंत्रित करता है वह नियंत्रित होता है। कम्प्यूटर किसी भी प्रकार आत्मरक्षा नहीं कर सकता है। उदाहरणार्थ श्याम नामक किसी व्यक्ति ने एक ई-मेल अकाउन्ट बनाया तथा एक विशेष पासवर्ड उसने अपने इस अकाउन्ट को खोलने के लिए चुना। कम्प्यूटर अब यह नहीं देखता कि उस अकाउन्ट को खोलने वाला श्याम ही है बल्कि यह देखता है कि पासवर्ड क्या है ? ठीक उसी प्रकार स्वचालित टेलर मशीन (Automatic Teller Machine) से पैसा कौन निकाल रहा है इसकी चिंता कम्प्यूटर नहीं करता, बल्कि यह केवल कार्ड के साथ पासवर्ड वैध है कि नहीं, इसकी जाँच करता है। यह दृष्टिकोण कम्प्यूटर को एक ओर विश्वसनीय बनाता है तो दूसरी ओर इसकी विश्वसनीयता पर एक प्रश्नचिन्ह भी खड़ा करता है।
कम्प्यूटर का विकास (Evolution of Computer)
कम्प्यूटर का इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है जबकि चीन में एक गणना-यंत्र (Calculating Machine) ‘अवेकस’ का अविष्कार हुआ था। यह एक यान्त्रिक डिवाइस (Mechanical Device) है, जो आज भी चीन, जापान सहित एशिया के अनेक देशों में अंको की गणना के लिए काम आती है।
शताब्दियों बाद अनेक अन्य यांत्रिक मशीनें अंकों की गणना के लिए विकसित की गई। सत्रहवीं शताब्दी में फ्रांस के गणितज्ञ ब्लेज पास्कल (Blaize Pascal) ने एक यांत्रिक अंकीय गणना-यंत्र (Mechanical Digital Calculator) सन् 1645 में विकसित किया। इस मशीन को एडिंग मशीन (Adding Machine) कहते थे, क्योंकि यह केवल जोड़ या घटाव कर सकती थी। यह मशीन घड़ी (Watch) और ओडोमीटर (Odometer) के सिद्धांत पर कार्य करती थी। उसमें कई दाँतयुक्त नकरियाँ (Toothed wheels) थीं जो घूमती रहती थीं। चकरियों के दाँतों (Teeth) पर 0 से 9 तक के अंक छपे रहते थे। प्रत्येक चकरी (Wheel) का एक स्थानीय मान (Positional/ Place Value) था। जैसे- इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि।
इसमें प्रत्येक चकरी स्वयं से पिछली चकरी के एक चक्कर लगाने पर एक अंक पर घूमती थी। ब्लेज पास्कल के इस एडिंग मशीन (Adding Machine) को पास्कलाइन (Pascaline) कहते हैं जो सबसे पहला यांत्रिकीय गणना-यंत्र (Mechanical Calculating Machine) था। आज भी कार व स्कूटर के स्पीडोमीटर (Speedometer) में यही यंत्र कार्य करता है।
सन् 1694 में जर्मन गणितज्ञ व दार्शनिक गॉटफ्रेड विलहेम वॉन लेबनीज (1646 1716) (Gottfried Wilhelm Von Leibnitz.) ने पास्कलाइन (Pascaline) का विकसित रूप तैयार किया जिसे रनिंग मशीन’ (Reckoning Machine) या लेबनीज चक्र (Leibnitz Wheel) कहते हैं। यह मशीन अंको के जोड़ व बाकी के अलावा गुणा व भाग की क्रिया भी करती थी। इसके पश्चात इसी प्रकार का एक यांत्रिक गणना-यंत्र एरिथ्मोमीटर (Arithinometer) थॉमस डे कॉल्मर (Thomas De Colmar) ने 1820 में बनाया था।
जेकार्ड्स लूम (Jacquard’s Loom)
सन् 1801 में फ्रांसीसी बुनकर (weaver) जोसेफ जेकार्ड (Joseph Jacquard) ने कपड़े बुनने के ऐसे लूम (Loom) का आविष्कार किया जो कपड़ों में डिजाइन (Design) या पैटर्न (Pattern) स्वतः देता था। इस लूम की विशेषता यह थी कि यह कपड़े के पैटर्न (Pattern) को कार्डबोर्ड के छिद्रयुक्त पंचकाडों से नियन्त्रित करता था। पंचकार्ड पर छिद्रों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति द्वारा धागों को निर्देशित किया जाता था।
जेकार्ड (Jacquard) के इस लूम (Loom) ने दो विचारधाराएँ दी जो आगे कम्प्यूटर के विकास में उपयोगी सिद्ध हुई। पहली यह कि सूचना (Information) को पंचकार्ड (Punch-card) पर कोडेड (Coded) किया जा सकता है। दूसरी विचारधारा यह थी कि पंचकार्ड (Punch-card) पर संगृहीत सूचना(Stored Information), निर्देशों (Instructions) का समूह है जिससे पंचकार्ड को जब भी काम में लिया जायेगा तो निर्देशों का यह समूह एक प्रोग्राम (Program) के रूप में कार्य करेगा।
चार्ल्स बैबेज का डिफरेंस इंजिन (Charles Babbage’s Difference Engine)
कम्प्यूटर के इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी का प्रारम्भिक समय स्वर्णिम युग माना जाता है। अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) ने एक यांत्रिक गणना मशीन विकसित करने की आवश्यकता तब महसूस की जबकि गणना के लिए बनी हुई सारणियों में त्रुटि आती थी। चूंकि ये सारणियाँ (Tables) हस्तनिर्मित (Hand set) थीं, इसलिए इनमें त्रुटि आ जाती थी।
चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक मशीन का निर्माण किया जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने वहन किया। उस मशीन का नाम ‘डिफरेन्स इंजिन (Difference Engine)’ रखा गया। इस मशीन में गियर (Gears) और शाफ्ट (Shafts) लगे थे और यह भाप (Steam) से चलती थी।
इसके पश्चात् सन् 1833 में चार्ल्स बैबेज ने डिफरेंस इंजिन (Difference Engine) का विकसित रूप एक शक्तिशाली मशीन एनालिटिकल इंजिन (Analytical Engine) तैयार किया। यह मशीन कई प्रकार के गणना कार्य (Computing Work) करने में सक्षम थी। यह पंचकाडों पर संगृहीत निर्देशों के अनुसार कार्य करने में सक्षम थी। इसमें निर्देशों (Instructions) को संगृहीत (Store) करने की क्षमता थी और इसके द्वारा स्वचालित रूप से परिणाम भी छापे जा सकते थे।
बैबेज का कम्प्यूटर के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा। बैबेज का एनालिटिकल इंजिन (Analytical Engine) आधुनिक कम्प्यूटर का आधार बना और यही कारण है कि चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) को कम्प्यूटर विज्ञान का जनक (Father of Computer Science) कहा जाता है।
चार्ल्स बैबेज के एनालिटिकल इंजिन को शुरू में बेकार समझा गया तथा इसकी उपेक्षा की गयी जिसके कारण बैवेज को अपार निराशा हुई। परन्तु अप्रत्याशित रूप से एडा ऑगस्य (AdaAugusta), जो प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन (Lord Byron) की पुत्री थों, ने बैबेज के उस एनालिटिकल इंजिन में गणना के निर्देशों को विकसित करने में मदद की। चार्ल्स बैबेज को जिस प्रकार ‘कम्प्यूटर विज्ञान का जनक’ होने का गौरव प्राप्त है, उसी प्रकार विश्व में एडा ऑगस्टा को पहले प्रोग्रामर होने का श्रेय जाता है। ऑगस्य को सम्मानित करने के उद्देश्य से एक प्रोग्रामिंग भाषा का नाम एडा (Ada) रखा गया।
होलेरिथ सेंसस टेबुलेटर (Hollerith Census Tabulator)
सन् 1890 में कम्प्यूटर के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण घटना हुई, वह थी अमेरिका की जनगणना का कार्य। सन् 1890 से पूर्व जनगणना का कार्य पारम्परिक तरीकों से किया जाता था। सन् 1880 में शुरू की गई जनगणना में 7 वर्ष लगे थे। कम समय में जनगणना के कार्य को सम्पन्न करने के लिए हर्मन होलेरिथ (Herman Hollerith) (1869-1926) ने एक मशीन बनाई जिसमें पंचकाडों (Punch cards) को विद्युत द्वारा संचालित किया गया। उस मशीन की सहायता से जनगणना (Census) का कार्य केवल तीन वर्ष में सम्पन्न हो गया। सन् 1896 में होलेरिथ ने पंचकार्ड यंत्र बनाने की एक कम्पनी टेबुलेटिंग मशीन कम्पनी (Tabulating Machine Company) स्थापित की। सन् 1911 में यह कम्पनी का अन्य कम्पनी के साथ विलय हुआ जिसका परिवर्तित नाम ‘कम्प्यूटर टेबुलेटिंग रिकॉडॉग कम्पनी’ (Computer Tabulating Recording Company)’ हो गया।
आइकेन और मार्क-1(AIKEN and MARK-1)
सन् 1940 विद्युत यांत्रिक कम्प्यूटिंग (Electromechanical Computing) शिखर पर पहुंच चुकी थी। आई. बी. एस. (IBM) के चार शीर्ष इंजीनियरों व डॉ हॉवर्ड आईकेन (Dr. Howard Aiken) (1900-1973) ने सन् 1944 में एक मशीन को विकसित किया और इसका अधिकारिक नाम (Official name) ऑटोमेटिक सिक्वेन्स कन्ट्रोल्ड कैल्कुलेटर (Automatic Sequence Controlled Calculator) रखा। बाद में इस मशीन का नाम मार्क-1 (Mark-1) रखा गया। यह विश्व का सबसे पहला विद्युत यांत्रिक कम्प्यूटर (Electromechanical Computer) था। इसमें 500 मील लम्बाई के तार 30 लाख विद्युत संयोजन (Connections) थे। यह 6 सेकण्ड में एक गुणा (Multiplication) और 12 सेकण्ड में एक भाग (Division) की क्रिया कर सकता था।
कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ (Generation of Computers)
सन् 1946 में प्रथम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, वैक्यूम ट्यूब (Vacuum tube) युक्त एनिएक (ENIAC) कम्प्यूटर की शुरूआत ने कम्प्यूटर के विकास को एक आधार प्रदान किया। कम्प्यूटर के विकास के इस क्रम में कई महत्वपूर्ण डिवाइसेज को सहायता से कम्प्यूटर ने आज तक की यात्रा तय की। इस विकास के क्रम को हम कम्प्यूटर में हुए मुख्य परिवर्तन के आधार पर पाँच पीढ़ियों में विभाजित करते हैं।
पीढ़ी (Generation) | वर्ष (Year) |
प्रथम पीढ़ी (First Generation) | 1946 – 1956 |
द्वितीय पीढ़ी (Second Generation) | 1956 -1964 |
तृवीय पीढ़ी (Third Generation) | 1964 – 1971 |
चतुर्थ पीढ़ो (Fourth Generation) | 1971 से वर्तमान |
पंचम पौढ़ी (Fifth Generation) | वर्तमान से भविष्य |
कम्प्यूटर की प्रथम पीढ़ी (First Generation of Computers)
सन् 1946 में एनिएक (ENIAC) नामक कम्प्यूटर के निर्माण से ही कम्प्यूटर की प्रथम पौढ़ी का प्रारम्भ हो गया। इस प के कम्प्यूटरों में वैक्यूम टयूब का प्रयोग किया जाता था जिसका अविष्कार सन् 1904 में किया गया। इस पीढ़ी में एनिएक के अलावा और कई अन्य कम्प्यूटरों का निर्माण हुआ जिनके नाम एडसैक (EDSAC Electronic Delay Storage Automatic Calculator), एडवैक (EDVAC Electronic Discrete Variable Automatic Computer), यूनिवेक (UNIVAC- Universal Automatic Computer) एवं यूनिवैक-1 (UNIVAC-1) हैं।
प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों के लक्षण :-
- वैक्यूम टयूब का प्रयोग
- पंचकार्ड पर आधारित
- संग्रहण के लिए मैग्नेटिक इम का प्रयोग
- बहुत ही नाजुक और कम विश्वसनीय
- बहुत सारे एयर कंडीशनरों का इस्तेमाल
- मशीनी तथा असेम्बली भाषाओं में प्रोग्रामिंग
कम्प्यूटर की द्वितीय पीढ़ी (Second Generation of Computer)
कम्प्यूटरों के द्वितीय पोढ़ो को शुरूआत ट्रॉजिस्टर का कम्प्यूटर में उपयोग किया जाने से हुआ। विलियम शांकले Shockley) ने ट्रॉजिस्टर का अविष्कार 1947 में किया था जिसका उपयोग द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों मे वैक्यूम टयूब के स्थान पर किया जाने लगा । ट्रॉजिस्टर के उपयोग ने कम्प्यूटरों को वैक्यूम ट्यूबों के अपेक्षाकृत अधिक गति प्रदान की।
द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों के मुख्य लक्षण :-
- वैक्यूम ट्यूब के बदले इंजिस्टर का उपयोग
- अपेक्षाकृत छोटा एवं उर्जा की कम खपत
- अधिक तेज एवं विश्वसनीय
- प्रथम पौढ़ी की अपेक्षा कम खर्चीले
- COBOL एवं FORTRAN जैसे उच्चस्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास
- संग्रहण डिवाइस प्रिंटर एवं ऑपरेटिंग सिस्टम आदि का प्रयोग
कम्प्यूटर की तृतीय पीढ़ी (Third Generation of Computer)
कम्प्यूटरों की तृतीय पीढ़ी की शुरूआत 1964 में हुई। इस पौढ़ी ने कम्प्यूटर को आई सी प्रदान किया। आई सी अर्थात एकीकृ सर्किट (Integrated Circuit) का अविष्कार टेक्सास इन्स्ट्रूमेन्ट कम्पनी (Texas Instrument Company) के एक अभियंता जैक किल्बी (Jack Kilby) ने किया इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों पे ICL 2903, ICL 1900 और UNIVAC 1108 प्रमुख थे।
तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों में मुख्य लक्षण :-
- एकीकृत सर्किट (integrated circuit) का प्रयोग
- प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ियों की अपेक्षा आकार एवं वजन बहुत कम
- अधिक विश्वसनीय
- पोर्टेबल एवं आसान रख-रखाव
- उच्चस्तरीय भाषाओं का वृहद स्तर पर प्रयोग
कम्प्यूटर की चतुर्थ पीढ़ी (Fourth Generation of Computer)
सन् 1971 से लेकर आज तक के कम्प्यूटरों को चतुर्थ पीढ़ी के श्रेणी में रखा गया है। इस पौढ़ी में एकीकृत सर्किट (Integrated) Circuit) को अधिक विकसित किया गया जिसे विशाल एकीकृत सर्किट (Large Integrated Circuit) कहा जाता है। अ लगभग 300000 ट्रॉजिस्टरों के बराबर का परिपथ एक इंच के चौथाई भाग में समाहित हो सकता है। इस अविष्कार से पूरा सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट एक छोटे से चिप में आ गया जिसे माइक्रो प्रोसेसर (अति सूक्ष्म) और इनके उपयोग वाले कम्प्यूटरों का नाम माइक्रो कम्प्यूटर कहलाया।
ALTAIR 8800 सबसे माइक्रो कम्प्यूटर था जिसे मिट्स (MITS) नामक कम्पनी ने बनाया था। और इसी कम्प्यूटर पर बिल गेटस (Bill Gates) जो उस समय हावर्ड विश्वविद्यालय के छात्र थे, ने बेसिक भाषा को स्थापित किया था। इस सफल प्रयास के बाद बिल गेटस ने माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी की स्थापना की जो दुनिया में सॉफ्टवेयर की सबसे बड़ी कम्पनी है। इस कारण, बिल गेट्स को दुनिया भर के कम्प्यूटरों का स्वामी (Owner of Computers) कहा जाता है।
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में मुख्य लक्षण :-
- अतिविशाल स्तरीय एकीकरण (Very Large Scale Integration) तकनीक का उपयोग
- आकार में अदभुत कमी
- साधारण आदमी के क्रय क्षमता के अंदर
- अधिक प्रभावशाली, विश्वसनीय एवं अदभुत गतिमान
- अधिक मेमोरी क्षमता
- कम्प्यूटरों के विभिन्न नेटवर्क का विकास
कम्प्यूटर की पंचम पीढ़ी (Fifth Generation of Computer)
कम्प्यूटरों की पाँचवी पीढ़ी के श्रेणी में वर्तमान और भविष्य के कम्प्यूटरों को रखा गया है। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों के बारे में बहुत अधिक नहीं बताया जा सकता है क्योंकि इसके अंतर्गत भविष्य के कम्प्यूटर भी आते हैं। अपितु कम्प्यूटर वैज्ञानिक इसमें कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial Intelligence) की बात को सोच रहे हैं। ऐसा होने पर कम्प्यूटर अत्याधिक तार्किक हो जायेगें। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में नेटवर्क के विकास की और भी संभावनाएँ है।
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कम्प्यूटर के प्रकार (Type of Computer)
कम्प्यूटर अपने काम-काज, प्रयोजन या उद्देश्य तथा आकार-शक्ति के आधार पर विभिन्न प्रकार के होते हैं। इसलिए इन्हें हम निम्नलिखित तीन आधारों पर वर्गीकृत करते है।
- अनुप्रयोग (Application)
- उद्देश्य (Purpose)
अनुप्रयोग के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार :-
- एनालॉग कम्प्यूटर (Analog Computer)
- डिजिटल कम्प्यूटर (Digital Computer)
- हायब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer)
एनालॉग कम्प्यूटर (Analog Computer) :- एनालॉग कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर होते हैं जो भौतिक मात्राओं, जैसे दाब (pressure), तापमान (temperature), लम्बाई ( length ) आदि को मापकर उनके परिमाप अंकों में व्यक्त करते हैं। ये कम्प्यूटर किसी का परिमाप तुलना के आधार पर करते हैं। जैसे कि एक थर्मामीटर कोई गणना नहीं करता है अपितु ये पारे के सम्बंधित प्रसार (Relative Expansion) की तुलना करके शरीर के तापमान को मापता है। एनालॉग कम्प्यूटर मुख्य रूप से विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में पात्राओं (quantities) का अधिक उपयोग होता है। ये कम्प्यूटर केवल अनुमानित परिमाप हो देते हैं।
डिजिटल कम्प्यूटर (Digital Computer) :- डिजिटल कम्प्यूटर वह कम्प्यूटर होता है जो अंकों की गणना करता है। डिजिटल कम्प्यूटर डाटा (Data) और प्रोग्राम्स (Programs) को 0 तथा 1 में परिवर्तित करके उनको इलेक्ट्रॉनिक रूप में ले आता है। अधिकतर कम्प्यूटर डिजिटल कम्प्यूटर की श्रेणी में आते हैं।
हायब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer) :- हायब्रिड (Hybrid) का अर्थ है संकरित अर्थात अनेक गुण-धर्म में युक्त होना। वे कम्प्यूटर जिनमें एनालॉग कम्प्यूटर और डिजिटल कम्प्यूटर, दोनों के गुण उपस्थित हों, हायब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer) कहलाते हैं।
उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार :-
कंप्यूटर को दो उद्देश्यों के लिए हम स्थापित कर सकते हैं- सामान्य (General) और विशिष्ट (Special)। इस प्रकार कम्प्यूटर, उद्देश्य के आधार पर निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं :
- सामान्य उद्देशीय कम्प्यूटर (General Purpose Computer)
सामान्य उद्देशी कम्प्यूटर (General Purpose Computer) :- ये ऐसे कम्प्यूटर है जिनमें अनेक प्रकार के कार्य करने की क्षमता होती है लेकिन ये कार्य सामान्य होते हैं, जैसे शब्द प्रक्रिया (Word Processing) में टाइप करके पत्र व दस्तावेज तैयार करना, दस्तावेजों को अपना डाटाबेस (Database) बनाना आदि। इनके सी. मो. यू. (CPU) की क्षमता सीमित एवं की होती है।
इस लेख में हमने आपको कंप्यूटर का सामान्य परिचय दिया हम आशा करते है की आपको ये लेख अच्छा लगा होगा