हम अपने कानों द्वारा जो कुछ भी सुनते हैं उसे ध्वनि यानी आवाज़ कहते हैं। विज्ञान के अनुसार ध्वनि वह हलचल (Disturbance) है जो हमारे कानों में संवेदन (Sensation) पैदा करती है। ताप और प्रकाश की तरह ध्वनि भी ऊर्जा (Energy) का एक रूप है। क्या तुम जानते हो कि आवाज कैसे पैदा होती है और यह एक स्थान से दूसरे स्थान तक कैसे जाती है?

ध्वनि का संचरण
किसी भी वस्तु से ध्वनि तभी पैदा होती है जब उसका कोई न कोई भाग कम्पन (Vibrate) करता है। जब हम किसी घंटे पर चोट मारते हैं तो उसमें कम्पन पैदा हो जाता है जिसके फलस्वरूप आवाज़ पैदा होती है। आवाज़ करते हुए घंटे को यदि हम हाथ से छूकर देखें तो वह कम्पन करता हुआ लगेगा। कोई भी जीवधारी जब बोलता है तो उसके गले की झिल्ली कम्पन करती है। बिना कम्पनों के ध्वनि पैदा हो ही नहीं सकती।
इन तथ्यों से हम तीन निष्कर्ष निकालते हैं। पहला, ध्वनि के पैदा होने के लिए वस्तु का कम्पन – करना जरूरी है। दूसरा, ध्वनि तरंगों के रूप में चलती है और तीसरा, ध्वनि के संचरण (Propagation) के लिए किसी माध्यम का होना जरूरी है।
ध्वनि तरंगे क्या होती है?
जब कोई वस्तु कम्पन करती है तो उससे ध्वनि तरंगें (Sound Waves) पैदा होती हैं। जिस प्रकार तालाब के पानी में पत्थर का टुकड़ा फेंकने पर पानी की सतह पर तरंगें पैदा हो जाती हैं उसी प्रकार कम्पन के फलस्वरूप तरंगें पैदा होती हैं। ये तरंगें जब हमारे कानों तक पहुंचती हैं तो हमें आवाज़ सुनाई देती है। हमारे कान उन आवाज़ों को सुन सकते हैं जो कि 20 से 20,000 तक की आवृत्तियों (Frequencies) वाले कम्पनों से पैदा होती हैं। 20 से कम और 20,000 से अधिक आवृत्ति वाले कम्पनों के लिए हमारे कान संवेदनशील नहीं हैं।
ध्वनि एक स्थान से दूसरे स्थान तक तरंगों के रूप में चलती है। इन तरंगों को चलने के लिए माध्यम (Medium) की आवश्यकता होती है। यह माध्यम ठोस, द्रव और गैस कुछ भी हो सकता है। बिना माध्यम के अर्थात निर्वात (Vacuum) में ध्वनि तरंगें नहीं चल सकतीं।
ध्वनि तरंगो का उदहारण
इस तथ्य को निम्न प्रयोग से सिद्ध किया जा सकता है। बिना पेंदी वाली कांच की एक बोतल लेकर निर्वात पम्प (Vacuum Pump) से जोड़ दो। बोतल के मुंह पर कार्क लगाकर उसके भीतर एक बिजली की घंटी लटका दो। कार्क में दो छेद करके घंटी के तार बाहर निकाल दो। तारों को बैटरी से जोड़ने पर घंटी बजने लगती है जिसकी आवाज हमें सुनाई देती है। अब पम्प द्वारा बोतल के अन्दर की हवा निकालना शुरू करो। जैसे-जैसे बोतल के अन्दर की वाय कम होती जाती है घंटी की ध्वनि भी धीमी होती जाती है। जब बोतल के अन्दर हवा बिल्कुल नहीं रहती, तब हमें ध्वनि भी सुनाई नहीं देती। इससे स्पष्ट होता है कि ध्वनि को चलने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है।