ऐसा मना जाता है की बेबीलोनिया सभ्यता के स्थापक सेमेटिक जाति के लोग थे सुमेरिया की अपेक्षा बेबीलोनिया सभ्यता की कला निश्चित रूप से कम थी। इनमें सुमेरियनों की भाँति रचनात्मक प्रतिभा की कमी थी। इस क्षेत्र में केवल स्थापत्य और वास्तुकला की ही कुछ रचनाएँ थीं

बेबीलोनिया सभ्यता की भवन निर्माण कला
बेबीलोनिया निवासी कला के क्षेत्र में पीछे थे। इसका मूल कारण पत्थरों की कमी थी। कंच्ची ईंटों से बने भवन संभवतः 50 वर्ष में धराशायी हो गये थे। हम्मुराबी की विधि-संहिता में भवन के धराशायी होने पर कारीगरों को दण्डित किया जाता था ताकि दण्ड के भय से वे मजबूत भवन निर्मित करें। हम्मुराबी विधि-संहिता के अनुसार अगर भवन की छत टूटने के कारण मालकिन की मृत्यु हो जाती थी तो कारीगर की स्त्री को मृत्यु दण्ड दिया जाता था। साथ ही कारीगर को पुन: भवन निर्माण करना पड़ता था। हम्पूराबी के शासनकाल में भवनों की नींव साधारणतः पक्की ईंटों की होती थी। ऊपरी भाग कच्ची ईंटों से निर्मित किया जाता था। बेबीलोनियनों की भवन निर्माण शैली में मौलिक प्रतिभा का अभाव था।
बेबीलोनियन जिगुरात क्या है
बेबीलोनिया सभ्यता में शिखर भवन युक्त भवनों को बेबीलोनिया जिगुरात कहा जाता था। इसमें श्रेणीयुक्त और घनाकार (cubrial) मंजिलें हैं। जब महान् इतिहासकार हेरेडोटस ने बेबीलोन का भ्रमण किया था, तो उसने वहाँ अत्यन्त भव्य जिगुरात देखा जो सात मंजिलों का था और जिसकी ऊँचाई 650 फुट थी। जिसका मस्तिष्क एक ठोस सोने की चादर से ढका हुआ था। उसमें एक सुन्दर पलंग रखा हुआ था जिस पर देवताओं की प्रसन्नता की प्रतीक्षा में स्त्रियाँ रात को सोती थीं।
बोर्सिप्पा के जिगुरात की सात मंजिलों को बेबीलोन के सात ग्रहों के नाम से पुकारा जाता था, जिनके पहचान के लिए विभिन्न रंगों का प्रयोग किया गया था। सबसे नीचे शनि (Saturn) ग्रह को काले, उसके ऊपर क्रमश: वीनस (शुक्र), जुपिटर (बृहस्पति), मर्करी (बुद्ध), मासर (मंगल), चन्द्र और सूर्य क्रमश: सफेद, बैंगनी, नीला, सिन्दूरी, रूपहला (चाँदी) और सुनहले रंग से अंकित किये गये हैं। यह शिखर युक्त भवन किसलिये बना था कहना कठिन है। बिलडूरेन्ट के अनुसार इसका उद्देश्य कुछ अंशों में धार्मिक है जिसे देवी का उच्चतम आवास कहा जा सकता है। इसका दूसरा उद्देश्य ज्योतिष सम्बन्धी है। इस पर बैठकर ज्योतिषी ग्रहों की गति का अध्ययन किया करता था।
संगीत कला में बेबीलोनिया सभ्यता
बेबीलोनिया निवासी संगीत कला के प्रेमी थे। इसका प्रमाण यह है कि उनके उत्सवों में गाने बजाने का उत्तम प्रबन्ध होता था। इनके प्रमुख वाद्य-मन्त्रों में बाँसुरी मशक, तुरही मजीरा खंजरी तथा बीणा के नाम उल्लेखनीय हैं।
बेबीलोन की मुद्रा निर्माण
बेबीलोनियन युग में हर व्यक्ति को मुद्रा निर्माण करने की स्वतन्त्रता थी। सम्राट से लेकर साधारण व्यक्ति तक अपनी-अपनी मुद्राओं का निर्माण कराते थे। लेकिन इनकी मुद्राएँ सुमेरियनों की भाँति सुन्दर एवं आकर्षक नहीं होती थीं। उत्खनन में तत्कालीन मुद्राएँ प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुई है।
मूर्ति कला में बेबीलोनिया
बेबीलोनियन युग में स्थापत्य कला की दशा वास्तुकला की भाँति नगण्य थी उत्खनन द्वारा उनके द्वारा निर्मित रिलीफ चित्र तथा कुछ मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। हम्मुराबी युग की स्थापत्य कला की झाँकी पाषाण स्तम्भ पर उत्कीर्ण दृश्य होती है। वे पत्थर के तराशने में निपुण होते थे। वहाँ राजा को एक आदेश देवता देता हुआ अंकित है और राजा उसे ले रहा है। भवन निर्माण में ईंटों की जुड़ाई मिट्टी के गारे द्वारा होती थी। खुर्दबीन (Microscope) की सहायता से काँच की वस्तुओं पर कला अंकित करते थे। रजत एवं स्वर्ण ढलाई का कार्य भी होती था। उनके अस्त्र-शस्त्र लोहे एवं काँसे द्वारा निर्मित किये जाते थे।
बेबीलोनिया सभ्यता की चित्रकला
बेबोलोनिया चित्रकला भी वास्तु एवं स्थापत्य की भाँति अविकसित थी। चित्रकला के कुछ दृश्य उनकी दीवारों पर अंकित मिलते हैं। लेकिन उनकी तुलना मिस्र एवं क्रीट से प्राप्त चित्रों से नहीं की जा सकती। यह तथ्य ध्यातव्य है कि बेबीलोनिया चित्रकला कभी भी स्वतन्त्र कला के रूप में न संवर्द्धित हुई। इसका संवर्द्धन सदा पूरक कला के रूप में ही किया गया। बेबीलोनिया चित्रकला के उदाहरण हमें दीवारों के अलंकरण में ही मिलते हैं। मिस्र की समाधियों अथवा क्रीट के महलों में प्रयुक्त भित्तिचित्रों में जैसी चित्रकला का प्रदर्शन किया गया था वैसे साक्ष्य हमें बेबीलोनिया में नहीं मिलते हैं।
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बेबीलोनिया तक्षण कला के अन्तर्गत इनकी मुद्रा निर्माण कला का उल्लेख आवश्यक है। बेबीलोनिया में व्यापार वाणिज्य का अत्यधिक विकास किया गया था इसलिए मुद्रा की अधिक आवश्यकता पड़ती थी। यहाँ सर्वसाधारण से लेकर सम्राट तक अपनी व्यक्तिगत मुद्रा रखते थे। लेन-देन तथा व्यापारिक पत्रों पर हस्ताक्षर के बदले यही मुद्रा अंकित कर दी जाती थी। ये मुद्राएँ आयताकर अथवा वर्तुलाकार होती थीं। इन पर भाँति-भाँति के चित्र और उनके साथ व्यक्ति से सम्बन्धित नाम उत्कीर्ण रहते थे। इनकी शुचिता एवं सत्यता सत्यापित करने के लिए इन पर बेबीलोनिया देवताओं के नाम भी उत्कीर्ण कर दिये जाते थे।
बेबीलोनिया संगीत में विशेष रुचि रखते थे। अतएव अनेक प्रकार के वाद्य-यंत्र जैसे, बाँसुरी, बीन, सारंगी, ढोल, तुरही, झाँझ इत्यादि बनाये गये संगीत के कार्यक्रम मंदिरों, महलों तथा समृद्ध व्यक्तियों के यहाँ आयोजित समारोहों में सम्पन्न किये जाते थे। धनी लोग सुन्दर टाइल्स, चमकीले पत्थर तथा अनेक प्रकार के फर्नीचरों से अपने गृहों की शोभा वृद्धि करते थे। वे आभूषण भी बनाते थे लेकिन उनमें उच्चकोटि की कलाकारिता नहीं मिलती।
अन्य कलाओ में बेबीलोनिया सभ्यता
बेबीलोनिया सभ्यता में उच्च वर्ग एवं व्यापारियों के कक्षों की सजावट चमकीले पत्थरों, रंगीन पर्दो, मुलायम कम्बलों एवं कीमती फर्नीचरों से की जाती थी। जरी के वस्त्रों एवं गहरे रंगों का प्रयोग अधिक होता था। स्त्रियों को आभूषण धारण करने का शौक था, लेकिन इनके आभूषण आकर्षक नहीं होते थे।